परिचय
यूँ तो लिखना मेरी आवारगी और मेरे इश्क़ का वो परिचय है जो चौक चौराहों पर फक्कड़पन लिये अच्छे या बुरे विचारों के प्रवाह को मानवमूल्यों के चश्मे से देखता है। समझ नहीं पाता हूँ अच्छा लिखने के लिये आवश्यक मापदंड क्या है ? विचार या विचारों की आज़ादी,विद्वता या विद्वेष ,भाव या भावहीनता ,सारगर्भित या निरर्थकता , द्वन्द या अंतःद्वंड अथवा कुछ और ! ये नहीं तो कुछ और ही सही ,पर यूँ ही नहीं कोई कलम का सिपाही बन जाता है।यूँ ही नहीं विचारों को निचोड़ते ,शब्दों को निःशब्द करते ,तपते - तपाते धैर्य धरे कोई समर्पित कलम का "दधीचि" बन जाता है और यूं ही नहीं कोई अर्जुन सा यशस्वी हो जाता है जो कलम की धनुष पर ,नैसर्गिक विचारों की प्रत्यंचा चढ़ा ,शब्दों के बाण से पाखंड का आखेट करता है। मैं उपरोक्त किसी भी बात पर शब्दशह खड़ा नहीं उतरता हूँ क्यूंकि मैं 'आम' हूँ ,इसलिए स्वछंद लिखता हूँ।
वैचारिक त्रिकोण -PMC
खैर ,मुद्दे की बात करते हैं,सोचा था दीपो के उत्सव "दीपोत्सव" पर दो-एक 'शब्दों के दीये' मैं भी जलाऊँगा परन्तु अचानक दिशा और दशा बदल गई ,मन का मतान्तर हो चला मेरी कलम से। दीये तो जलाऊँगा जरूर पर आज नहीं लिहाज़ा अपने शब्दों से ही सही पर उनलोगों के साथ खड़ा होऊं जिन्होंने एक झटके में अपने जीवन भर की मेहनत की कमाई गवा दी। जी हां आज बात हर उस आम हिंदुस्तानी है,हर उस सच्चे हिंदुस्तानी है जो मेहनत करता है,जीवन के जद्दोजेहद से लड़कर गिरता और फिर उठता है,वो एक ईमानदार Taxpayer होता है,उनसे सरकार की तमाम उम्मीदे होती है,और वो तन,मन और धन से सरकार के निर्देशानुसार कर्तव्य पथ पर अडिग रहता है।ऐसे में अगर एक झटके में उसका सब कुछ छिन जाए,वो अकेला हो जाये,बेघर हो जाये,निराश हो जाये,उसे खाने के लाले पड़ जाए,उसी का पैसा उसे न मिले ,किसी को दवा के लिए पैसे नहीं तो किसी को बच्चे के दूध व् पढ़ाई के लिए पैसे नहीं ,उसपर से मुंबई जैसी मायानगरी,ऐसे में कोई सोलंकी ,कोई वैष्णवी क्या करे!
भ्रष्टाचार और चाटुकारिता का शिकार PMC बैंक ने अपने ग्राहकों की दीवाली का दीवाला तो निकाला ही साथ ही जीवंत आत्मविश्वास को जिंदा जला डाला।ये एक राजनितिक हत्या नही तो और क्या है? क्यूँ हर बार कुव्यवस्था का शिकार आमलोग हों ?क्या उनकी सबसे बड़ी गलती ये है वो आम आदमी है ?सरकारी तंत्र और सरकार की जवाबदेही क्यूँ नही तय होती है ?हर बार आम आदमी ही क्यों कटघरे में खड़ा होता है ?पैसा लेने के समय बैंक और सरकार पूरी ताकत से आम आदमी का पैसा लेती है ,पर जब देने की बारी आती है तो जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते हैं। जब कोई किसान बैंक का कर्ज देने में देर करता है तो फिर देखिये बैंकिंग सिस्टम को ,बड़ी ही कार्यकुशलता से किसान को इतना परेशां किया जाता है की वो आत्महत्या कर लेता है ,वही जब माल्या,नीरव जैसे वीर बैंक को हजारों करोड़ का चूना लगाते हैं तो उन बैंकों और सरकारों की घिग्घी बंध जाती है।
न RBI ,न सरकार,और न ही सरकार का मुखिया एक शब्द भी उम्मीद की दे सका।दुख तो तब और होता है,जब इन्ही पैसो का दुरुपयोग कर नेता,गुंडा ,माफिया और उनके चमचे,उस मेहनत की कमाई पर डाका डालते हैं और लोगो की उम्मीदों का कब्रगाह बना अपने सपनों की बहुमंजली इमारत खड़ा करते है।राजनीति के कुरूप चेहरे ने रावण के भेष में राम की बलि दे दी।
स्तब्ध रह जाता हूँ जब PMC घोटाले की सोचता हूँ,रातो की नींद और दिन का चैन लूटाए बैठे लोगों का एक एक पल किसी लोहे के चने चबाने से कम नहीं।सत्ताशीन प्रधानमंत्री जी इस दरम्यान उन तमाम कलाकारों से मिल रहे है,जिन्होंने हिंदुस्तान का नमक खाकर,नमकहरामी करते देर न लगाई ,जिन्हे ये देश समय समय पर असहिष्णु लगता है,जो बड़े बंगलों में आलीशान जीवन जीते हुए भी डरा हुआ महसूस करते हैं।मोदी जी जरा उनसे भी मिल लेते,मिलना छोड़िये Tweet कर देते तो शायद आपके शब्द बैंक ग्राहकों के लिए ऑक्सीजन का काम जरूर करता,लेकिन आपने शायद इसे जरूरी नहीं समझा।
नियम कानून के जाल में फँसा आम इंसान क्या करे!बैंक में जमा पूंजी की गारंटी क्यों नहीं होनी चाहिए ? क्यों नहीं बैंक में जमा पूंजी Insured होनी चाहिए ?चंद लोगो के साजिश का भुक्तभोगी आमजन क्यों हो?Use And Throw की पालिसी कब तक चलेगी?
आभार
कानून का योग AUGUST KRANTI |अगस्त क्रांति Blogging सोने की चिड़ियाँ
भ्रष्टाचार और चाटुकारिता का शिकार PMC बैंक ने अपने ग्राहकों की दीवाली का दीवाला तो निकाला ही साथ ही जीवंत आत्मविश्वास को जिंदा जला डाला।ये एक राजनितिक हत्या नही तो और क्या है? क्यूँ हर बार कुव्यवस्था का शिकार आमलोग हों ?क्या उनकी सबसे बड़ी गलती ये है वो आम आदमी है ?सरकारी तंत्र और सरकार की जवाबदेही क्यूँ नही तय होती है ?हर बार आम आदमी ही क्यों कटघरे में खड़ा होता है ?पैसा लेने के समय बैंक और सरकार पूरी ताकत से आम आदमी का पैसा लेती है ,पर जब देने की बारी आती है तो जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते हैं। जब कोई किसान बैंक का कर्ज देने में देर करता है तो फिर देखिये बैंकिंग सिस्टम को ,बड़ी ही कार्यकुशलता से किसान को इतना परेशां किया जाता है की वो आत्महत्या कर लेता है ,वही जब माल्या,नीरव जैसे वीर बैंक को हजारों करोड़ का चूना लगाते हैं तो उन बैंकों और सरकारों की घिग्घी बंध जाती है।
न RBI ,न सरकार,और न ही सरकार का मुखिया एक शब्द भी उम्मीद की दे सका।दुख तो तब और होता है,जब इन्ही पैसो का दुरुपयोग कर नेता,गुंडा ,माफिया और उनके चमचे,उस मेहनत की कमाई पर डाका डालते हैं और लोगो की उम्मीदों का कब्रगाह बना अपने सपनों की बहुमंजली इमारत खड़ा करते है।राजनीति के कुरूप चेहरे ने रावण के भेष में राम की बलि दे दी।
स्तब्ध रह जाता हूँ जब PMC घोटाले की सोचता हूँ,रातो की नींद और दिन का चैन लूटाए बैठे लोगों का एक एक पल किसी लोहे के चने चबाने से कम नहीं।सत्ताशीन प्रधानमंत्री जी इस दरम्यान उन तमाम कलाकारों से मिल रहे है,जिन्होंने हिंदुस्तान का नमक खाकर,नमकहरामी करते देर न लगाई ,जिन्हे ये देश समय समय पर असहिष्णु लगता है,जो बड़े बंगलों में आलीशान जीवन जीते हुए भी डरा हुआ महसूस करते हैं।मोदी जी जरा उनसे भी मिल लेते,मिलना छोड़िये Tweet कर देते तो शायद आपके शब्द बैंक ग्राहकों के लिए ऑक्सीजन का काम जरूर करता,लेकिन आपने शायद इसे जरूरी नहीं समझा।
नियम कानून के जाल में फँसा आम इंसान क्या करे!बैंक में जमा पूंजी की गारंटी क्यों नहीं होनी चाहिए ? क्यों नहीं बैंक में जमा पूंजी Insured होनी चाहिए ?चंद लोगो के साजिश का भुक्तभोगी आमजन क्यों हो?Use And Throw की पालिसी कब तक चलेगी?
निष्कर्ष
संछेप में सरकार से उम्मीद करता हूँ कि दोगले और चरित्रहीन कुकृत्य की सजा आम इंसान को नहीं दी जाएगी।अन्यथा बैंक पर से भरोसा उठने लगेगा ,तब ये मत कहना कि लोगो ने साथ नहीं दिया।वैसे भी हिंदुस्तान में Taxpayer कम है और जब उन्ही का पैसा मारा जाने लगेगा, तो फिर लोग उसी रास्ते पर आने लगेंगे जिसपर हिन्दुतान की आधी आबादी है।जो खाना और पचाना जानती है।आभार
कानून का योग AUGUST KRANTI |अगस्त क्रांति Blogging सोने की चिड़ियाँ