Saturday 10 August 2019

AUGUST KRANTI |अगस्त क्रांति

AUGUST KRANTI


"आज़ादी" बहुत कीमती शब्द है साहब!ये शब्द से कहीं ज्यादा वो भावना है जो रह-रह कर अटखेलियां लेती है,इतराती है और जमीं से आसमां तक अपने वजूद होने का एहसास कराती है।निरन्तर कुर्बानियां देनी पड़ती है तब जाकर मन आज़ाद होता है,तन आज़ाद होता है,विचार आज़ाद होता है,कलम आज़ाद होती है,भाव आज़ाद होता है,आशा और उम्मीद आज़ाद होती है,स्वाभिमान आज़ाद होता है अर्थात हर वो प्राण आज़ाद होता है जो जीवंत रहना चाहता है।ऐसी ही एक कहानी है "मदर-ए-वतन" हिंदुस्तान की।
      "मन समर्पित ,तन समर्पित और ये जीवन समर्पित,
         चाहता हूँ देश की धरती,तुझे कुछ और भी दूँ"।
  'यूँ ही नहीं स्याही से लिखे ये शब्द कागज को अमर कर देते हैं
यूँ ही नहीं पुरुषार्थ से भरे ये जज्बात ,वीरता को अमर कर देते हैं'।

15th August

'AUGUST' हिंदुस्तान के इतिहास का वो महीना है जो सावन भी है और बसंती भी है,जिसमें  राम भी है और  शिवभक्ति भी है,जिसमें गंगा भी है और आरती भी है,जिसमें आरम्भ भी है और अंत भी है,जो एक सोच भी है और विचारों का उन्माद भी है,जिसमें त्याग भी है और त्योहार भी है, तभी तो ये हिन्दुतान के स्वर्णाक्षरों का "अगस्त क्रांति" कहलाता  है। इस महीने में आज़ाद हिंदुस्तान का 'मुस्तकविल' माँ भारती के चरणों में नतमस्तक था।
आज़ादी के उपवन में जो फूल महक रहे हैं वो जलियांवाला बाग के लोगों खून से सिंचित है,वो उन महान वीर एवं वीरांगनाओ के लहु का प्रमाण है जिन्होंने इस भूमि को उर्वरा बनाया । ये वो दौर था जब आज़ादी के दीवाने 'बसंती चोला' लिए भारत माँ को आज़ाद करने के लिए मौत की'आँखों में आँखें' डाल "इंक़लाब-जिंदाबाद" के नारों को बुलंद कर रहे थे।
कौन भूल सकता है 24 साल के जतिन्द्रनाथ दास को जिन्होंने लाहौर की जेल में 64 दिन भूख हड़ताल कर अपने प्राणों की आहुति दे दी।कौन भूल सकता है खुदीराम बोस को जिन्हें 18 साल की उम्र में फाँसी दे दी गई।भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को जिन्होंने 8 अप्रैल 1929 को 'Delhi Central Legislative Assembly'में धुंआ बम फेंका और  "इंक़लाब-जिंदाबाद"के नारे लगते हुए बेखौफ खुद की गिरफ्तारी दी। मकसद  बहुत पारदर्शी और स्पष्ट थे-"If the deaf are to hear,the sound has to be very loud".
क्या जवानी थी, क्या रवानी थी कि मौत भी उनलोगों को डरा न सका और" मोहे रंग दे बसंती चोला" गाते हुए 23 मार्च 1931 की सुबह भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने हँसते हुए फाँसी के फंदों को गले लगा लिया मानो कोई स्वर्णाभूषण हो,मानो कोई श्रृंगार हो,मानो कोई अर्पण हो,मानो कोई तर्पण हो,जो समर्पित थी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी माँ भारती को आज़ाद करने को।
"मेरा नाम आज़ाद है,पिता का नाम स्वतंत्रता है और पता जेल है"यह परिचय ही  काफी था अंग्रेजी हुकूमत की नसें ढीली कर देने वाले बहुरूपिया चंद्रशेखर आज़ाद की।"तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा",किसी चिंगारी से कम नहीं जिसने लाखों युवाओं को चलता फिरता विचारशील बारूद के ढेर में बदल दिया,ऐसी थी आज़ाद खयाल की बेबाकी और ओज।झांसी की रानी ,मंगल पांडेय,बाल गंगाधर तिलक,वीर सावरकर, तात्या टोपे तथा ऐसे कितने ही भारत माँ के लाल थे जिन्होंने सर्वोच्च बलिदान दिया।उस माँ,उस पिता ,उस बहन,उस अर्धांगिनी को भी सलाम जिन्होंने निजस्वार्थ त्याग अपने  बेटे ,अपने भाई और अपने पति को भारत माँ के चरणों में समर्पित कर दिया।
" धन्य है वो धरा जिसका सपूत वतन पे मरा, धन्य है वो     धरा, धन्य है वो तिरंगा,धन्य है वो प्रसूता माता,
   कतरा-कतरा ख़ून से जहाँ माँ का कर्ज चुकाया जाता"।
कुछ कटु सत्य कभी किसी हिंदुस्तानी को नहीं भूलना चाहिए,क्योंकि जो देश अपने बलिदानियों,क्रांतिकारियों का सम्मान नहीं करता उसका पतन सुनिश्चित है।आज़ादी तो 21 Oct 1943 को ही मिल जाती जब "आज़ाद हिंद फौज "के नायक सुभाष चंद्र बोस ने पूरे नार्थ ईस्ट को अपने कब्जे में ले लिया था और उसे 'आज़ाद' घोषित ही नहीं किया अपितु बैंक खोले,करेंसी जारी की।परंतु ऐसा क्या हो गया कि 1947 आते आते "नेता जी" गायब हो गए,प्लेन Crash हो गया? प्रश्न अभी भी उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा है।
पर एक बात तो सच है कि कुछ कुंठित विचारों ने अंग्रेजी नमक इतना खाया था कि भारत माँ के स्वतंत्रता के मिठास को हल्का कर गया।
               "दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल,
                साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल"।
कवि प्रदीप द्वारा रचित और लता जी की सुरीली आवाज इसे बेहद कर्णप्रिय बनाती है ,पर इस गाने की भावनाओं से मेरी आंशिक सहमति है। 'खडग बिना ढाल' के आज़ादी नहीं मिलती और 'शक्ति' के बिना सम्मान नहीं मिलता।
     "क्षमा शोभती उस भुजंग को,जिसके पास गरल हो,
     उसको क्या जो दंतहीन,विषरहित ,विनीत सरल हो"।

Independence

खैर,आज़ादी के जश्न में वो त्याग,वो समपर्ण,वो वीरता ,वो शौर्य,वो पुरुषार्थ हर हिंदुस्तानी को याद रखना चाहिए और ध्यान रखना चाहिये कि ये आज़ादी निरंतर हमारे वीर महापुरुषों,हमारे वीर जवानों के त्याग का परिणाम है।
सभी को स्वतंत्रता दिवस ही ढेर सारी शुभकामनाएं।
   "जो भरा नहीं है भावों से,जिसमे बहती रसधार नहीं,
   हृदय नहीं वो पत्थर है , जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं"।
बचपन(भाग१) बचपन(भाग-२)

जय हिन्द ,
वन्देमातरम   

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