Tuesday 1 October 2019

बिहार में बाढ़ है नीतिशे कुमार है

बिहार में बाढ़ है नीतिशे कुमार है

अपनी लेखनी को 'अनुलोम-विलोम 'करवाना हो तो चले आइये बिहार,'दम फूल जाएगा आपका'।Double Engine की सुशासित एवं सुसज्जित सरकार,Double Digit Growth Rate, Double Development, Double Hospital Fecility ,Double Size Road यानि यहाँ सब कुछ Double-Double है।'तमंचे पे डिस्को' गाने को रचने वाले को आंशिक ही सही पर बिहार की याद जरूर आयी होगी क्योंकि मेरा ऐसा मानना है कि ऐसे गाने की कल्पना बिहार को सामने रखे बिना नहीं हो सकती।
क्षमा कीजिये मेरी कलम बाढ़ में लाचार यत्र-तत्र  थोड़ा भटक गई। क्या करूँ!कोई मदद को तैयार नहीं, विचार बाढ़ के पानी में ठिठुर रहा है ,मन सड़क पर तैर रहे नालों की गंदगियों से सना है,शरीर लाचार, बेबस एवं बेसुध निढाल पड़ा है किन्तु नयन प्रथमतल से सड़क पर तैरती मछली को देख कर मृगनयनी हो रहा है।
कहते हैं समय के साथ तक़दीर कभी भी बदल सकती हैं।कितनी इतराती होगी मछलियां आज -आदमी घर में और मैं बाहर! सपरिवार जल की रानी अभी बदहाल पोखर से निकल कर विशाल जलसागर में अटखेलियाँ ले रही होगी।
उपरोक्त सार बिहार की राजधानी पटना की है,बाढ़ में बहता पटना,बेहाल पटना,बदहाल पटना,बीमार पटना,भूखा -प्यासा पटना,मानवीय मूल्यों का मूल्यहीन होता पटना,किस्मत पर रोता पटना,अपमानित होता पटना,प्राकृतिक त्रासदी का भयंकर गवाह देता पटना,शब्द कम पड़ जा रहे हैं  पटना के वर्तमान स्वरूप को वर्णन करने में।
खैर,बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि इतनी सूखी पड़ी है कि मानवीय अश्रु के सैलाब भी इन्हें सींच नहीं पा रही है।'ठीके'कहते हैं नीतीश कुमार-कोई क्या कर सकता है प्राकृतिक आपदा के सामने,परेशान हो रहे होंगे वो अपने विला में,बैठक पे बैठक और  उसपे फिर बैठक,बैठ-बैठ के बैठे लाचार,"ठीके तो हैं नीतीश कुमार"!
पटना एक अव्यवस्थित राजधानी हमेशा से रही है,न सड़क,न ही सड़क के नियम,न नाले औऱ न ही नालों की कोई परिभाषा,कचरा यत्र-तत्र फैला ,शायद इसलिए दुनिया के प्रमुख प्रदूषित शहरों में उस पटना की गिनती आती है जो कभी पाटलिपुत्र की पवित्र धरती हुआ करती थी।
"Smart city "का सपना दिखाने वालों को वास्तविक परिस्थितियों की कोई विशेष चिंता नहीं,"स्वच्छ भारत-स्वच्छ बिहार" का झंडा उनलोगों के हाथों में है जिनमें स्वच्छमन का घोर अभाव है।विकास के दौड़ की आपाधापी में पटना समेत तमाम जिलों की मूलभूत आवश्यकताएं बहुत पीछे छूट गई।
ये सच है कि इन आपदाओं पर किसी का जोर नहीं परंतु 14 साल के सुशासन में एक व्यवस्थित पटना का निर्माण नहीं हो पाया,नाले जाम हो चुके हैं,थोड़ी से बारिश के पानी में नालों का पानी सड़क पर आ जाता है तो ऐसी घनघोर बारिश में शहर की क्या स्थिति हो सकती है उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है ये "बाढ़"।गली,मुहल्ले,कॉलोनियां,सड़क,मकान सब डूबे पड़े हैं, 'आम क्या खास क्या' सभी मकान की चारदीवारी से  पानी के निकल जाने का इन्तेजार कर रहे हैं साथ ही टुकुर-टुकुर सरकारी सहयोग की आस लगाये बैठे हैं।अव्यवस्था की ऐसी दशा अगर सुशासन की दस्तूर है तो विकास की दौड़ कैसी होगी ये विचारणीय है।गाड़ियां डूबी पड़ी है,कारोबार ठप पड़ा है या यूं कहूँ कि आर्थिक क्षति और मानवीय मूल्यों का तार-तार होता बिहार असल विकास की बाट जोह रहा है।
जैसा कि हर दुर्घटना के बाद सरकार सबक लेती है और जैसे-जैसे मामला ठंडा होता है तो सरकार भी ठंडा होने लगती है,उम्मीद है कि इस बार ऐसा नही होगा,Election भी है,एक सार्थक कदम उठाया जाएगा ,ऐसी उम्मीद सभी जरूर कर रहे हैं।सिर्फ सरकार के भरोसे रहना एक व्यवस्थित समाज की सोच नहीं हो सकती,समाज निर्माण में भागीदार एक- एक व्यक्ति को आगे आना होगा,आवाज़ बुलंद करनी होगी,संगठित होकर आपसी सहयोग से हर स्तर पर गंदगी,प्रदूषण,नालों की सफाई इत्यादि के लिए सजग होना होगा,गहरी नींद में सोए सरकारी तंत्र को झकझोरना होगा नहीं तो बाढ़ के रूप में आई ये प्राकृतिक त्रासदी महज इशारा है कि अब नहीं संभले तो भविष्य में ऐसी त्रासदी मानवीय संहार का रूप ले सकती है।
बिहार में बाढ़ से आयी बदहाली, जर्जर सरकार और सरकारी तंत्र को आइना दिखाने जैसा है,भावनाओं के अभाव में ही ऐसा हो सकता है कि कोई गलतियों से सीख न ले।
आशा है परिस्थितियां जल्द सुधरेगी और सामान्य जनजीवन दोबारा पटरी पर लौटेगा साथ ही समुचित प्रावधान की कोशिश युद्घस्तर पर होगी ताकि भविष्य में इन आपदाओं के कुप्रभाव को कुशल प्रबंधन से कम से कम किया जा सके।

आभार

3 comments:

  1. सिर्फ कुशल प्रबन्धन से काम नही चलेगा। खुद को भी जागरूक बनना पड़ेगा। सबसे पहले तो कचरा प्रबन्धन सीखना होगा ताकि नाला जाम ने हो।

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    1. जी बिल्कुल सही ङोल रहे हैं आप।

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  2. मैंने लिखा है सामाजिक स्तर पर आमजन को आगे आना होगा,फिलहाल मैं खुद भुक्तभोगी हूँ तो बेहतर समझ पा रहा हूँ इन सब की आवश्यकता ।

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