Saturday 31 August 2019

Assam NRC Draft-2019 -Consolidation and Facts

Assam NRC Draft-2019 

परिचय 
उत्पत्ति के अनेकानेक प्रक्रियाओं से गुजर कर शुन्य में टिकी एक धरा जहाँ  जीवन का वजूद स्थापित हुआ उस ग्रह  का नाम पृथ्वी "EARTH" रखा गया। इस धरा के जीवउत्पत्ति केअनेक सिद्धांत तय किये गए ,विद्वानों के बीच मतान्तर भी रहा पर एक मुद्दा जरूर ऐसा था जिसपर सभी धुरंधरों की एक राय  बनी वो थी अधिकारों का वर्गीकरण और उसका विस्तारीकरण। शुरूआती दिनों में  धरा एक रही होगी ,न कोई महादेश और न ही कोई देश रहा होगा। परन्तु जैसे -जैसे विकास का प्रादुर्भाव होता गया धरा ही नही अपितु नभ,नीर ,विचार ,समाज,संस्कृति ,प्रकृति इत्यादि सबका बंटवारा हो गया। "ये तेरा घर ये मेरा घर" का वैचारिक सिद्धांत इतना प्रबल हो गया कि कर्तव्य कमजोर होता  गया ,अधिकार अवसादग्रस्त हो गया और अनाधिकार शब्द बलवान होता चला गया। शनैः शनैः बात अधिकार से ऊपर उठकर अधिकार हनन तक जा पंहुचा तात्पर्य हक़ की रोटी के साथ-साथ दो-एक रोटी की हकमारी भी अधिकार क्षेत्र का वास्तविक विस्तार माना जाने लगा। दूसरों के अधिकारों का मान मर्दन बलवान होने का प्रमाण होने लगा। और यहीं  से शुरू हुआ उन तमाम हथकंडो का जिससे अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के बीच की पतली सी अदृश्य दीवार टूटने लगी थी। परिणामस्वरुप अल्पसंख्यक ,बहुसंख्यक और बहुसंख्यक ,अल्पसंख़्यक हो गए। यह प्रक्रिया जब अप्राकृतिक और असामान्य हो तो उत्कृष्ट मापदंड के अभाव  में लाभ से कहीं ज्यादा हानि पंहुचा रहा होता है।

परिपेक्ष -Assam NRC Draft-2019 

यह प्रक्रिया जब विकराल एवं वीभत्स रूप ले लेता है तो जो परिस्थितिया उभरती है उसे अंग्रेजी में Demographic Change कहते हैं। वैसे तो   Demographic Change नाम की महामारी से हिन्दुतान का कोई भी क्षेत्र अछूता नही है पर सर्वाधिक कुप्रभावित राज्यों में असम -ASSAM  प्रमुख स्थान पर है। राजनैतिक स्वार्थलोलुपता,तुष्टिकरण,लचर शासन प्रणाली ,असंगठित सामाजिक स्वरुप तथा सरल और समावेशी सांस्कृतिक दुर्बलता शायद इतना प्रबल हो गया कि भूखे नंगे परन्तु हिंसक प्रवृति लिए बांग्लादेशी अवैध घुसपैठ कर Infection  की तरह असम के हर संसाधन का इस कदर दोहन करने लगे मानो  उनके पुरखों  की जागीर हो और इस तरह आसामरूपी शरीर को अंदर से खोखला करने लगा।

Assam NRC Draft-2019 

ASSAM -NRC
NRC-ASSAM-2019

आज़ाद हिंदुस्तान के गुलाम राजनैतिक जयचंदों  ने अंग्रेजों  के अंग्रेजी उपहार "फूट  डालो और शासन करो "(Divide and Rule) की नीति  को संभाल  कर ही नहीं रखा बल्कि लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इन बाह्य घुसपैठियों को वो तमाम सुविधाएं उपलब्ध करवाई जो असम के मूल लोगो का जन्मजात अधिकार था। इस Demographic Change ने इतना व्यापक कुप्रभाव डाला की इसका असर सम्पूर्ण देश के राजनैतिक ,सामाजिक ,सांस्कृतिक तथा अन्य क्षेत्रों के मानस पटल पर स्पष्ट दिखने लगा। कहते हैं  जब वक़्त करवट बदलता है ,जब आह अंगड़ाई  लेती है,जब सिसकती ,हकलाती,घिघयाती अँधेरी रात स्वयं घोर अँधेरे का शिकार हो जाती है ,तब कोने से आती एक लौ भी मशाल बन जाती है ,एक चिंगारी भी विस्फोटक रूप  ले लेती है ,एक विचार क्रांति का  रूप ले लेता है और तब  काली घटा छंटने लगती है और एक सुनहरा सूर्योदय इंतजार कर रहा होता है।  
जेठ  की गर्म लू के थपेड़े खा-खाकर बेसुध पड़ा असमिया स्वाभिमान मंद मंद श्वास भरने लगा ,कुठाराघात से सूखी बंद आंखें अब धीरे धीरे आशा -उम्मीद  की  नमीं  लिए आंख  के किसी कोने से रिसने लगा था,ढीली पड़ी विश्वास की नसों में अब आत्मविश्वास तेज रफ़्तार से दौर रहा था। वजूद की रक्षा और भविष्य की सुरक्षा हेतु असमिया फक्कड़पन  बेबाक होने लगा ,सामाजिक जाग्रति आने लगी जिसने स्वार्थी और मदहोश जयचंदों  की नींद ही नही अपितु नींव  भी हिला दी।
शासन बदल गया ,प्रशासन मजबूर हो गया ,लोकतान्त्रिक व्यवस्था हरकत में आने लगी ,सामाजिक क्रांति का ऐसा तानाबाना बुना गया कि  विधायिका,कार्यपालिका से लेकर  न्यायपालिका तक हिल गई। परिणामस्वरूप देश की सर्वोच्च न्यायलय के संरक्षण में Demographic Change  का अवलोकन कर वास्तविक परिपेक्ष के पुनः स्थापन का आदेश दिया गया ।

विश्लेषण -Assam NRC Draft-2019 

बढ़ती जनसख्या और सिमित संसाधनों का तीव्र शोषण किसी भी सभ्य समाज का परिचय नही हो सकता। सरकार  कितनी भी policies  ले आये ,जब तक जनसंख्या control  नही होगा ,विकास की  सार्थकता सिमित ही रह जाएगी। 
असम के परिपेक्ष में जनसख्या का विस्फोट बांग्लादेशी घुसपैठिये  का ऐसा  रूप है जिसने असम के आम जनजीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है। दिनानुदिन हिंसा ,मादक पदार्थो की तस्करी ,गौ तस्करी ,नकली नोटों का धंधा,दंगा और न जाने कितने ही गैरकानूनी काम होने लगे । 
प्रश्न तो उठेंगे  आखिर इतने सख्त सुरक्षा होने के बावजूद इतनी भारी संख्या में घुसपैठ कैसे हो गया? ये एक दिन में तो नही हुआ होगा ?खैर आरोप प्रत्यारोप के चक्कर में न पर वास्तविकता से जुड़े तःथ्यों का विश्लेषण जरुरी है। 
पूर्वी बांग्लादेश बनने के काल से घुसपैठ की शुरआत हुई और ये लगातार चलता रहा वोट की राजनीति  के लिए। १९७१ के युद्ध से पहले दमनकारी पाकिस्तानी नीतियों का यह  नतीजा रहा की बहुत से बांग्लादेशी भारत में घुसपैठ कर गए। राजनितिक इच्छाशक्ति के आभाव में इस घुसपैठ ने ऐसी स्थति ला दी की असम के कई जिले ऐसे है जहाँ घुसपैठिये बहुसंख्यक हो गए है। बशीरहाट ,चिरांग ,बोंगईगांव आदि कुछ ऐसे क्षेत्र है जहाँ 70 से 80 फीसदी तक मुस्लिम population  हो गया जबकि 2011 की जनगणना के हिसाब से ३० फीसदी से भी कम यहाँ की अल्पसंख्यक अर्थात मुस्लिम आबादी थी। 
आज जबकि NRC Draft -2019 का final रिपोर्ट आ गया है तो लाजमी है बहुत से नेताओ के पेट में दर्द भी होगा कि 19 लाख के  आसपास जो उनके वोटबैंक थे वो हाथ से निकल जायेंगे। जिन लोगो के नाम इस लिस्ट में नही है वो  Illegal Migrants (Determination by Tribunal) Act, 1983 के तहत Foreigners  Tribunal में खुद के नागरिकता से जुड़े प्रामाणिक कागजात के साथ जा सकते हैं। 
ये सारी  प्रक्रियाएं 120 दिनों के अंदर होना है तो तय मानिये आने वाले दिनों में परिस्थतिया सुलझेंगी  बहुत हद तक तो परिस्थितिया उलझेंगे भी। 

चुनौती -Assam NRC Draft-2019 

19  लाख से ज्यादा लोग विदेशी नागरिक घोषित किये गए हैं ,मतलब साफ़ है इतने लोगों  को  इनके देश वापस भेजना साधारण  बात नही है। अशांति,हिंसा आदि ना  हो इसके लिये  जरुरी कदम के साथ ही सुनियोजित विस्थापन की पूरी तैयारी  भी करनी होगी। 

सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न  या चुनौती जो सामने दिख रही है कि कितने घुसपैठिये को बांग्लादेश वापस लेगा? क्यूंकि ये 2 ,4 या 10 का मामला नही है। और अगर लेगा तो किन शर्तो पर ?अगर बांग्लादेश इन्हे लेने से मना  कर देता है तो क्या विकल्प बचते हैं ?

निष्कर्ष -Assam NRC Draft-2019 

सारी  प्रक्रियाओं के तहत जब असम घुसपैठिया मुक्त होगा तो जरूर असम के लोगों  के विकास की रफ़्तार तेज होगी,crime  घटेगा और असम अपने पुराने  पहचान को फिर से जीवंत करेगा। Assam NRC Draft-2019   की ये प्रक्रिया अभी शुरुआत ही समझी जानी चाहिए क्यूंकि बंगाल ,बिहार ,ओड़िसा ,दिल्ली  और बाकि राज्यों में भी भारी घुसपैठ है। स्वार्थ से  ऊपर उठ राजनितिक पार्टियों को एकमत हो पुरे देश में इसे लागू  करने की जरुरत है। देश की भलाई  में ही हम सब की भलाई है। 


Thursday 15 August 2019

गांधीगिरी | Gandhigiri


गांधीगिरी | Gandhigiri

"गांधी" शब्द किसी 'नाम' की प्रामणिकता का वो आधार है जो खास को आम से अलग करता है।यह परिचय है उस महान संस्कृति की  जिसका प्रतिनिधित्व लंगोट,लाठी,और चश्मे वाले एक फ़क़ीर ने किया और "गांधीगिरी" की ऐसी  मिशाल पेश की कि पूरी दुनिया मंत्रमुग्ध हो गयी।यह वही गांधी है जिसने अंग्रेजो को भी गांधीगिरी सीखा दिया और जो अमन और शांति का प्रतीक बन "सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय" को धरातल पर फलीभूत किया ।यह पहचान भी है,अभिमान भी है,संस्कार भी है,सहशीलता भी है,स्वभाव भी है और धर्म भी है तभी तो ग्रंथो में लिखित "अहिंसा परमो धर्म" हमारी गौरवशाली परंपरा का हिस्सा रही है।उपरोक्त बातों का सार निकाला जाए तो गांधी एक शब्द ही नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा एक 'विचार' है ,एक चिंतन है और एक निश्चल जीवनप्रणाली का आधार स्तंभ है।

मंथन 

वक़्त बदला, सोच बदले, सभ्यताओं का आधुनिकीकरण शुरू हुआ,कदम से कदम मिलाकर चलने वाले दौर बदले और Fast and Furious का जमाना आ गया,संचार के माध्यम विकसित हुए,Social Media क्रान्ति हुई ,विचारो का आदान-प्रदान सुलभ हुआ और इन सबके बीच जो एक बड़ा परिवर्तन हुआ वो है मनुष्य का नैतिक और चारित्रिक पतन। मुद्दा राजनीतिक है तो राजनीति की ही बात करूंगा परंतु ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दरकिनार नहीं किया जा सकता है क्योंकि राजनीति का एक उत्कृष्ट मापदंड है चरित्र और नैतिकता।इन दोनों से फिसले तो राजनीति भी हाथ से फिसलने लगती है।
मोदी Vs गांधी का तुलनात्मक विश्लेषण सर्वथा अनुचित है परंतु गांधीगिरी की वैचारिक प्रसांगिकता को कहीं न कहीं ठेस पहुँची ,कोई आघात  हुआ,जैसे प्रकृति अपना नियम कानून खुद बनाती  ठीक से प्रकार राजनीति भी अपनी नीति और सिद्धान्त खुद तय करती है,राजनीति को भी अपना वजूद बरकरार रखना होता है तभी तो गांधी नाम रखने वाले से ज्यादा गांधीगिरी जीने वाले किसी 'मोदी' का उदय होता है।गांधी के नाम पर दशकों शासन करने वाले शायद गांधीगिरी भूल गए ,शायद वो विचाधारा कहीं पीछे छूट गई  जो राष्ट्रहित की बात करती थी या फिर गुमान हो गया गांधी होने पर और चकाचौंध में जीने वाले "गांधीगिरी की लौ" को सम्हाल कर नहीं रख  सके।दुष्यंत कुमार की कविता बड़ी सटीक होती  है :-
"हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए"।
जब बात देशहित की हो,जब बात समाज की हो और जब बात अवाम की हो तो प्रश्न तो उठेंगे ही कि 353 के बड़े स्कोर को पीछा करने वाली कांग्रेस 55 पर ही धराशाई  क्यों हो गई? प्रश्न तो यह भी उठेंगे एक आल राउंड गांधीगिरी से भरी कांग्रेस जो कभी बीजेपी को 1 का स्कोर भी करने नहीं देती थी आज वो इतना बड़ा स्कोर खड़ा कैसे कर रही है?अटल जी याद आते  हैं :-
हार नहीं मानूँगा ,रार नहीं ठानूँगा ,
काल के कपाल पर लिखता हूँ मिटाता हूँ ,
गीत नया गाता  हूँ। 
दो निष्कर्ष निकाले जा सकते है या तो BJP ने गांधीगिरी को निभाया या कांग्रेस ने गाँधीगरी का त्याग किया या ये भी हो सकता है कि दर्शकदीर्घा में बैठे वो लोग जिन्हें हमेशा गांधीगिरी के नाम पर भ्रमित किया गया आज शायद गांधीगिरी के सही मायने को समंझने लगे हों।मेरी सहमति तीसरे  विचार से है।
वो कांग्रेस जो 60-65 सालों तक हिंदुस्तान के राजनीति कि केन्द्रबिन्दु रही आज किनारे पर भी बड़ी मुश्किल से नज़र आती है।ऐसे में राष्ट्रकवि दिनकर जी का स्मरण होता है:-
सदियों की ठंडी-बुझी राख सुलग उठी ,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह,समय के रथ का घर्घर -नाद सुनो ,
सिंघासन ख़ाली करो की जनता आती है। 

निष्कर्ष 

मुद्दा चाहे न्याय का हो,साम्प्रदायिकता का हो,किसान का हो,विकास का हो,घोटालों का हो,राज्यो का हो,देशनीति की हो,विदेशनीति की हो,370 का हो,ट्रिपल तलाक  हो  या राफेल का हो हर मुद्दे पर  हँस कर या फिर आँख मारकर भारत की संसदीय अस्मिता का उपहास उड़ाने वाले को जनता कब तक बर्दाश्त करती! कब तक बर्दाश करती उन चाटुकारो की नीति को जिसने आम नागरिक के जीवन को हासिये पर धकेल दिया वर्ना ऐसा कौन सा संसाधन नहीं था  कि हिंदुस्तान 60 सालो तक शुद्ध पानी को तरसता रहा,ऐसा कौन पोषण नीति नहीं था कि साल दर साल नौनिहाल  कुपोषण का शिकार होता रहा,ऐसा कौन सा ज्ञान नही था की अज्ञानता चहुओर  डेरा डाली हुई थी,आखिर वो कौन से युद्ध कला नही  थी कि हम 1962 का युद्ध हार गए| चाणक्य,आर्यभट्ट,जगदीश चंद्र बोस ,अशोक,तानसेन,शिवाजी, सी वी रमन न जाने कितने की विधा के पारंगत इस मिट्टी  की पहचान थे फिर भी  हम एक कृतज्ञ राष्ट्र नहीं बन पाये।
'कमी नीति में नहीं नियत में थी',जो आज के दौर में अत्यधिक ही झलक रहा है।परंतु भूलना नहीं चाहिए कि हम सूचना क्रांति के दौर में है,"झूट छुप नही सकता और सच्चाई बहुत दिनों तक दबाई नही  जा सकती"।

घनिष्ठता इटली से भी रखिये पर नमक की कीमत जरूर अदा कीजिये।जनेऊ पहन मंदिर-मंदिर और फिर जनेऊ उतार मस्जिद-मस्जिद से ज्यादा जरूरी है देशहित के विचारों को निर्भीक होकर रखने का,सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखने का।इसके लिए जरूरी है कि सोच सही हो।इस धर्मयुद्ध में आज कृष्ण की चेतावनी को अर्जुन समझे और जिम्मेदार बने तो ही जीत होगी नहीं तो कोई नही जीतेगा,सब लोग हारेंगे,इंसानियत हारेगा।
चायवाले को शायद ये बेहतर समझ है,मानवता ,राष्ट्रप्रेम,दृढ़संकल्प से गाँधीगरी को जिया जा सकता है तभी तो हिचक नहीं  होती निर्णय लेने में,तभी तो आशा की  लौ लिए हिंदुस्तान को मोदी के रूप में एक उदयीमान सूर्य दिख रहा है।
                     व्यक्तिगत असहमति जायज  है किन्तु देश से असहमति नही हो सकती

आभार
AUGUST KRANTI |अगस्त क्रांति,सोने की चिड़ियाँ,Blogging,बचपन(भाग१)



Saturday 10 August 2019

AUGUST KRANTI |अगस्त क्रांति

AUGUST KRANTI


"आज़ादी" बहुत कीमती शब्द है साहब!ये शब्द से कहीं ज्यादा वो भावना है जो रह-रह कर अटखेलियां लेती है,इतराती है और जमीं से आसमां तक अपने वजूद होने का एहसास कराती है।निरन्तर कुर्बानियां देनी पड़ती है तब जाकर मन आज़ाद होता है,तन आज़ाद होता है,विचार आज़ाद होता है,कलम आज़ाद होती है,भाव आज़ाद होता है,आशा और उम्मीद आज़ाद होती है,स्वाभिमान आज़ाद होता है अर्थात हर वो प्राण आज़ाद होता है जो जीवंत रहना चाहता है।ऐसी ही एक कहानी है "मदर-ए-वतन" हिंदुस्तान की।
      "मन समर्पित ,तन समर्पित और ये जीवन समर्पित,
         चाहता हूँ देश की धरती,तुझे कुछ और भी दूँ"।
  'यूँ ही नहीं स्याही से लिखे ये शब्द कागज को अमर कर देते हैं
यूँ ही नहीं पुरुषार्थ से भरे ये जज्बात ,वीरता को अमर कर देते हैं'।

15th August

'AUGUST' हिंदुस्तान के इतिहास का वो महीना है जो सावन भी है और बसंती भी है,जिसमें  राम भी है और  शिवभक्ति भी है,जिसमें गंगा भी है और आरती भी है,जिसमें आरम्भ भी है और अंत भी है,जो एक सोच भी है और विचारों का उन्माद भी है,जिसमें त्याग भी है और त्योहार भी है, तभी तो ये हिन्दुतान के स्वर्णाक्षरों का "अगस्त क्रांति" कहलाता  है। इस महीने में आज़ाद हिंदुस्तान का 'मुस्तकविल' माँ भारती के चरणों में नतमस्तक था।
आज़ादी के उपवन में जो फूल महक रहे हैं वो जलियांवाला बाग के लोगों खून से सिंचित है,वो उन महान वीर एवं वीरांगनाओ के लहु का प्रमाण है जिन्होंने इस भूमि को उर्वरा बनाया । ये वो दौर था जब आज़ादी के दीवाने 'बसंती चोला' लिए भारत माँ को आज़ाद करने के लिए मौत की'आँखों में आँखें' डाल "इंक़लाब-जिंदाबाद" के नारों को बुलंद कर रहे थे।
कौन भूल सकता है 24 साल के जतिन्द्रनाथ दास को जिन्होंने लाहौर की जेल में 64 दिन भूख हड़ताल कर अपने प्राणों की आहुति दे दी।कौन भूल सकता है खुदीराम बोस को जिन्हें 18 साल की उम्र में फाँसी दे दी गई।भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को जिन्होंने 8 अप्रैल 1929 को 'Delhi Central Legislative Assembly'में धुंआ बम फेंका और  "इंक़लाब-जिंदाबाद"के नारे लगते हुए बेखौफ खुद की गिरफ्तारी दी। मकसद  बहुत पारदर्शी और स्पष्ट थे-"If the deaf are to hear,the sound has to be very loud".
क्या जवानी थी, क्या रवानी थी कि मौत भी उनलोगों को डरा न सका और" मोहे रंग दे बसंती चोला" गाते हुए 23 मार्च 1931 की सुबह भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने हँसते हुए फाँसी के फंदों को गले लगा लिया मानो कोई स्वर्णाभूषण हो,मानो कोई श्रृंगार हो,मानो कोई अर्पण हो,मानो कोई तर्पण हो,जो समर्पित थी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी माँ भारती को आज़ाद करने को।
"मेरा नाम आज़ाद है,पिता का नाम स्वतंत्रता है और पता जेल है"यह परिचय ही  काफी था अंग्रेजी हुकूमत की नसें ढीली कर देने वाले बहुरूपिया चंद्रशेखर आज़ाद की।"तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा",किसी चिंगारी से कम नहीं जिसने लाखों युवाओं को चलता फिरता विचारशील बारूद के ढेर में बदल दिया,ऐसी थी आज़ाद खयाल की बेबाकी और ओज।झांसी की रानी ,मंगल पांडेय,बाल गंगाधर तिलक,वीर सावरकर, तात्या टोपे तथा ऐसे कितने ही भारत माँ के लाल थे जिन्होंने सर्वोच्च बलिदान दिया।उस माँ,उस पिता ,उस बहन,उस अर्धांगिनी को भी सलाम जिन्होंने निजस्वार्थ त्याग अपने  बेटे ,अपने भाई और अपने पति को भारत माँ के चरणों में समर्पित कर दिया।
" धन्य है वो धरा जिसका सपूत वतन पे मरा, धन्य है वो     धरा, धन्य है वो तिरंगा,धन्य है वो प्रसूता माता,
   कतरा-कतरा ख़ून से जहाँ माँ का कर्ज चुकाया जाता"।
कुछ कटु सत्य कभी किसी हिंदुस्तानी को नहीं भूलना चाहिए,क्योंकि जो देश अपने बलिदानियों,क्रांतिकारियों का सम्मान नहीं करता उसका पतन सुनिश्चित है।आज़ादी तो 21 Oct 1943 को ही मिल जाती जब "आज़ाद हिंद फौज "के नायक सुभाष चंद्र बोस ने पूरे नार्थ ईस्ट को अपने कब्जे में ले लिया था और उसे 'आज़ाद' घोषित ही नहीं किया अपितु बैंक खोले,करेंसी जारी की।परंतु ऐसा क्या हो गया कि 1947 आते आते "नेता जी" गायब हो गए,प्लेन Crash हो गया? प्रश्न अभी भी उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा है।
पर एक बात तो सच है कि कुछ कुंठित विचारों ने अंग्रेजी नमक इतना खाया था कि भारत माँ के स्वतंत्रता के मिठास को हल्का कर गया।
               "दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल,
                साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल"।
कवि प्रदीप द्वारा रचित और लता जी की सुरीली आवाज इसे बेहद कर्णप्रिय बनाती है ,पर इस गाने की भावनाओं से मेरी आंशिक सहमति है। 'खडग बिना ढाल' के आज़ादी नहीं मिलती और 'शक्ति' के बिना सम्मान नहीं मिलता।
     "क्षमा शोभती उस भुजंग को,जिसके पास गरल हो,
     उसको क्या जो दंतहीन,विषरहित ,विनीत सरल हो"।

Independence

खैर,आज़ादी के जश्न में वो त्याग,वो समपर्ण,वो वीरता ,वो शौर्य,वो पुरुषार्थ हर हिंदुस्तानी को याद रखना चाहिए और ध्यान रखना चाहिये कि ये आज़ादी निरंतर हमारे वीर महापुरुषों,हमारे वीर जवानों के त्याग का परिणाम है।
सभी को स्वतंत्रता दिवस ही ढेर सारी शुभकामनाएं।
   "जो भरा नहीं है भावों से,जिसमे बहती रसधार नहीं,
   हृदय नहीं वो पत्थर है , जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं"।
बचपन(भाग१) बचपन(भाग-२)

जय हिन्द ,
वन्देमातरम   

Wednesday 7 August 2019

स्वराज

वैसे तो मेरी अनुभहीनता मेरी लेखनी के रास्ते का रोड़ा हमेशा बनती है पर पिछले 4-5 दिनों से ये किसी ऊंचे टीले से कम नहीं,जहाँ मेरी भावनाएं ,मेरे विचार उस ऊंचाई के सामने बौना साबित हो रहा।सामान्यतः मैं एक कॉलम कुछ घंटों के मेहनत के बाद लिख लेता हूँ पर आज चौथा दिन है जब मैं वाक्य के पांचवे पूर्णविराम से आगे  लिखने में कठनाई महसूस कर रहा हूँ।बचपन से जिस विषय पर  निबंध लिखता आया,भाषण देता आया उस 15 अगस्त पर आज लिखना मेरे लिए किसी भावनात्मक गुलामी से कम नहीं जहाँ मेरे शब्द मेरे विचारों का साथ नहीं दे रही।
"Freedom at Midnight", "Gandhi or boss " और  कुछ अन्य आलेख पढ़ अपनी आज़ाद लेखनी को धार देने की पूरी कोशिश कर रहा था।लेकिन पिछले दो दिनों से नरेंद्र मोदी जी और आज "राजनीति की सुषमा" जी ने मेरी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया।
#15 August,#Article 370 और आज #सुषमा जी का देहावसान,समझना कतिपय कठिन नहीं कि मेरे लिए ये कितना असमंजस भरा वक़्त है।क्या लिखूं,कहाँ से शुरू करुँ और कहा अंत करूँ कुछ नहीं समझ आ रहा।काफ़ी जद्दोजेहद के बाद निर्णय लिया कि आज सुषमा के "शर्मा से स्वराज" बनने की कहानी लिखूँ।
#सफल बचपन #सफल ncc cadet#सफल शिक्षा #सफल वकील #सफल प्रेम विवाह,#सफल गृहणी#सफल पत्नी#सफल माँ# सफल सांस्कृतिक पहचान#सफल प्रथम BJP की महिला प्रवक्ता#सफल मुख्यमंत्री#सफल विदेश मंत्री और इन सबसे ऊपर एक प्रखर वक्ता और एक सफल इंसान शायद कम पड़ जाए "स्वराज" को वर्णन करने के लिए।
स्वराज कॉल से शादी कर सुषमा शर्मा का स्वराज बन जाना और फिर माथे में सिंदूर,गले मे मंगसलसूत्र और भारतीय परिधान ,कितनी गौरवान्वित होती होगी भारतीय संस्कृति।
राजनीति की ऐसा कोई कला नहीं जिसे सुषमा जी ने  गढ़ा नहीं ,शायद इसलिए ही तो विपक्षी भी उनके कायल थे।
कौन भूल सकता है संयुक्त राष्ट्र में उनका अमिट भाषण जहाँ उन्होंने हिंदी का सर ऊंचा ही नहीं किया अपितु पाकिस्तान की धज्जियां उड़ा दी।भारतीय विदेशनीति को एक अलग ऊंचाई दे भारत की विश्वप्रतिष्ठा को नया मुकाम दे गईं 'स्वराज'।महिला सशक्तिकरण का एक नायाब उदारण थी 'स्वराज'।
खैर,राजनीति के सुषमा का चले जाना जैसे भारतीय राजनीति के प्राकृतिक सौंदर्य का चले जाने जैसा है। भारतीय राजनीति का ये खालीपन शायद ही पूर्ण हो।जो भी हो एक बार फिर ये बात सच हो गई कि अच्छे लोगो की आयु कम होती है शायद भगवान को उनकी ज्यादा जरूरत महसूस होती होगी।
आज़ादी की बात जल्द करूँगा फिलहाल अंतर्मन से स्वराज जी को "श्रद्धांजलि"।
            ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
            उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
आभार।

Saturday 3 August 2019

Blogging

हिंदी का श्रृंगार और उसका आलिंगन हाल के दिनों तक मेरे लिए सिर्फ उपहास का विषय था।सोचता था आज के इस आपा-धापी और खचाखच भरी  भीड़-भाड़ में कहीं मेरी  हिंदी का मान-मर्दन न हो जाये,कहीं वो कथित 'Mob Lynching' का शिकार न हो जाये। Software और Western Lifestyle के इस दौर में कहीं मेरी हिंदी किसी Window XP की तरह Out of Dated न हो जाये ,साथ ही साथ सादगी और शालीनता की पहचान हम सब की हिंदी किसी Jeans -Top और मटक-मटक कर चलने वाली 'English-Winglish' के सामने जलील न हो जाये। इस डर ने मेरी शब्दों,भावनाओं को कैद एवं कलम को अर्थहीन बना दिया था। यह सच भी है कि आज के दौर में वास्तविकता से परे हिंदी की प्रामाणिकता से कुठाराघात किया गया। खैर,सच्चाई जो भी हो देश आजाद है, सो कलम को भी उतनी ही स्वतंत्रता है।
हिंदी के बड़े-बड़े धुरंधरों को जब पढ़ता हूँ तो हँसी,खुशी,गम,आंसू,विचारशून्य,विचारशील इत्यादि जैसे अनेकानेक  आव-भाव   क्रमशः शब्दों की गतिशीलता  के हिसाब से बदल रहे होते हैं। अतः इंसान की भावनाओ को झकझोर  देनेवाली ताक़त लिये इन शब्दों से दो-एक होने की इच्छा मेरी भी जागने लगी।
कहते हैं लेखक "God Gifted"होते हैं , 'Inbulit Software' की तरह और इसलिए 'Unique' होते हैं,मैं भी इस विचार से 100 फीसदी सहमत हूँ। तब मन में एक कसक रह जाती है और यकायक प्रश्न आ जाता है कि जो 'God Gifted' नहीं हैं,जिनकी हिंदी ज्ञान अधूरी है, जो थोड़ी बहुत ताकझांक, जुगाड़ से Pirated या Duplicate Software होकर हिंदीरूपी 'Operating System' में Installed हो जाते हैं, उनकी भी तो अपनी अलग जगह है,आखिर सब लोग Original Version ही नहीं खोजते हैं, Pirated का भी बहुत बड़ा बाज़ार है।
यह सोचकर मैंने हिंदी में लिखने का Risk उठाया,डर है कि हिंदी के इस हरे भरे मैदान पर 'Hit Wicket' न हो जाऊं! फिर हिम्मत जगती है कि Crease पर रहना या आउट हो जाना तो  खेल का हिस्सा है,जीत हर हाल में मेरी ही होनी है, क्योंकि सफलता या असफलता दोनो ही Case में आप कुछ न कुछ जरूर सीखते हैं।
फिर  मिला इंटेरनेट की दुनिया का ऐसा Plateform जहाँ कोई Reservation नहीं था,जहाँ कोई जातीय रंजिश नहीं थी,जहाँ कोई धार्मिक विभाजन नहीं था,जहाँ आजादी थी, अपने विचारों एवं भावनाओ को पंख देने का और ऊंची उड़ान भरने का,जिसे उनकी भाषा में "Blogging"कहते हैं।
किसी ने कहा टॉपिक Select Karo फिर लिखो,किसी ने कहा Lifestyle पर लिखो,अनानेक Suggestions से गुजरता हुआ में' किंकर्तव्यविमूढ़'हो गया जैसे कोई Computer 'Hang' हो जाता है।
मेरी भावनाएं मुझे अशांत कर रही थीं ,ऐसा क्या लिखूं की वो लोगो को पसंद आ जाये,लोग मेरे Blogs को पढें,अच्छे-अच्छे Comments मिले और मेरी लेखिनी  धूप और बारिश के बीच आसमान में  किसी "सतरंगी इंद्रधनुष"की तरह भव्य रुप ले।
इन सब विचारों के बीच मैं खुद को भावहीन समझने लगा,महसूस हुआ कि जब मैं अपने लेखनी से खुद को खुश नहीं कर सकता तो दूसरों को क्या खुश करूँगा।और इसलिए मेरी लेखनी में निरंतरता बनी रहे इसके  लिए जरूर यह है कि मैं वो लिखू जो मुझे पसंद है,जिसे मैं शब्दों के माध्यम से 'जी' सकूँ, जो मुझे नैसर्गिक आत्मबल दे।
मेरी भावनाओं से सहमति भी होगी और असहमति भी, क्योंकि जीवन का सिर्फ एक पक्ष नहीं हो सकता, फिर भी आने वाले दिनों में हर उस पहलू को छूने का प्रयास करूंगा जिसमें मेरी जीत हो या हार,  "इंसानी जज्बात,इंसानियत,पशु-पक्षी,धरा और इन सबसे ऊपर "हिंदी" की जीत होनी चाहिये।इसमें अगर बूँद भर भी योगदान कर पाया तो मेरी यह यात्रा सफल हो जाएगी।

"कभी भाव लिखता हूँ, कभी जज्बात लिखता हूँ,
कभी जमीं तो कभी आसमां लिखता हूँ।
इस छोर से उस छोर तक ,इस ओर से उस ओर तक,
निर्बाध लिखता हूँ,बेपरवाह लिखता हूँ,जैसा भी लिखता हूँ ,हर वक़्त बेहिसाब लिखता हूँ"।

आभार।