कवि मन चाहे कविता बेहतर हो 'आज' कल से और 'कल' आज से, नए आयाम जुड़े ,शब्दो से खेलूं, वर्णमालाओं में गोते लगाऊँ, परख कर रचु नित दिन ,मानव जीवन के गीत,जो बेहतर हो कल 'आज'से|
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AUGUST KRANTI " आज़ादी " बहुत कीमती शब्द है साहब!ये शब्द से कहीं ज्यादा वो भावना है जो रह-रह कर अटखेलियां लेती है,इतराती ह...
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घुटनों के बल लुढकते-2 हम कब कैसे अपने पैरों पे खड़े होकर चलने लगते है ,ये बेहतर समझ तब आने लगता है ,जब हम स्कूल भेजे जाने लगते है। किसी मा...
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बचपन कितनी शीतलता और चंचलता ली होती हैं,इसका एहसास तब होता है,जब किसी नन्हें को नज़रो के सामने पल्लवित होता देखते है। उस नन्ही जान में ख...