Monday 21 October 2019

PMC Bank Scam and Common People

 परिचय 


यूँ  तो लिखना मेरी आवारगी और मेरे इश्क़ का वो परिचय है जो चौक चौराहों पर फक्कड़पन   लिये अच्छे  या बुरे विचारों  के प्रवाह को मानवमूल्यों के चश्मे से देखता है। समझ नहीं पाता हूँ  अच्छा  लिखने के लिये आवश्यक मापदंड क्या है ? विचार या  विचारों  की आज़ादी,विद्वता या विद्वेष ,भाव या भावहीनता ,सारगर्भित या निरर्थकता , द्वन्द या अंतःद्वंड अथवा कुछ और ! ये नहीं तो कुछ और ही  सही ,पर यूँ  ही नहीं कोई कलम का सिपाही बन जाता है।यूँ  ही नहीं विचारों  को निचोड़ते ,शब्दों को निःशब्द  करते ,तपते - तपाते  धैर्य धरे कोई समर्पित कलम का "दधीचि" बन जाता है और यूं ही नहीं कोई अर्जुन सा यशस्वी  हो जाता है जो कलम की धनुष पर ,नैसर्गिक विचारों की प्रत्यंचा चढ़ा ,शब्दों के बाण  से पाखंड का आखेट करता है। मैं उपरोक्त किसी भी बात  पर शब्दशह  खड़ा नहीं उतरता हूँ क्यूंकि मैं 'आम' हूँ ,इसलिए स्वछंद लिखता हूँ।


 वैचारिक त्रिकोण -PMC

    खैर ,मुद्दे की बात करते हैं,सोचा था दीपो के उत्सव "दीपोत्सव" पर दो-एक  'शब्दों के दीये' मैं  भी जलाऊँगा परन्तु अचानक दिशा और दशा बदल गई ,मन का मतान्तर हो चला मेरी कलम से। दीये तो जलाऊँगा  जरूर पर आज नहीं  लिहाज़ा अपने शब्दों से ही सही पर उनलोगों  के साथ खड़ा होऊं जिन्होंने एक झटके में अपने जीवन भर की मेहनत की कमाई गवा दी। जी हां आज बात हर उस आम हिंदुस्तानी है,हर उस सच्चे हिंदुस्तानी है जो मेहनत करता है,जीवन के जद्दोजेहद से लड़कर गिरता और  फिर उठता है,वो एक  ईमानदार Taxpayer होता है,उनसे सरकार की तमाम उम्मीदे होती है,और वो तन,मन और धन से सरकार के निर्देशानुसार कर्तव्य पथ पर अडिग रहता है।ऐसे में अगर एक झटके में उसका सब कुछ छिन जाए,वो अकेला हो जाये,बेघर हो जाये,निराश हो जाये,उसे खाने के लाले पड़ जाए,उसी का पैसा उसे न मिले ,किसी को दवा के लिए पैसे नहीं तो किसी को बच्चे के दूध व् पढ़ाई के लिए पैसे नहीं ,उसपर से मुंबई जैसी मायानगरी,ऐसे में कोई सोलंकी ,कोई वैष्णवी क्या करे!
भ्रष्टाचार और चाटुकारिता का शिकार PMC बैंक ने अपने  ग्राहकों की दीवाली का दीवाला तो निकाला ही साथ ही जीवंत आत्मविश्वास को जिंदा जला डाला।ये एक राजनितिक  हत्या नही तो और क्या है? क्यूँ  हर बार  कुव्यवस्था का शिकार आमलोग हों ?क्या उनकी सबसे बड़ी गलती ये है वो आम आदमी है ?सरकारी तंत्र और  सरकार की जवाबदेही क्यूँ  नही तय होती है ?हर बार आम आदमी ही क्यों कटघरे में खड़ा होता है ?पैसा लेने के समय बैंक और सरकार  पूरी ताकत से आम आदमी का पैसा लेती है ,पर जब देने की बारी आती है तो जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते  हैं। जब कोई किसान बैंक का कर्ज देने में देर करता है तो फिर देखिये बैंकिंग सिस्टम को ,बड़ी ही कार्यकुशलता से किसान को इतना परेशां किया जाता है की वो आत्महत्या कर लेता है ,वही जब माल्या,नीरव जैसे वीर बैंक को हजारों  करोड़ का चूना लगाते हैं तो उन बैंकों और सरकारों की घिग्घी  बंध  जाती है।
RBI ,न सरकार,और  न ही सरकार का मुखिया एक शब्द भी उम्मीद की दे सका।दुख तो तब और  होता है,जब इन्ही पैसो का दुरुपयोग कर नेता,गुंडा ,माफिया और उनके चमचे,उस मेहनत की कमाई पर डाका डालते हैं और लोगो की उम्मीदों का कब्रगाह बना अपने सपनों की बहुमंजली इमारत खड़ा करते है।राजनीति के कुरूप चेहरे ने रावण के भेष में राम की बलि दे दी।
स्तब्ध रह  जाता हूँ जब PMC घोटाले की सोचता हूँ,रातो की नींद और  दिन का चैन लूटाए बैठे लोगों का एक एक पल किसी लोहे के चने चबाने से कम नहीं।सत्ताशीन प्रधानमंत्री जी  इस दरम्यान  उन तमाम कलाकारों से मिल रहे है,जिन्होंने हिंदुस्तान का नमक खाकर,नमकहरामी करते देर न लगाई ,जिन्हे ये देश समय समय पर असहिष्णु लगता है,जो बड़े  बंगलों  में आलीशान जीवन जीते हुए भी डरा हुआ महसूस करते हैं।मोदी जी जरा उनसे भी मिल लेते,मिलना छोड़िये Tweet कर देते तो शायद आपके शब्द  बैंक ग्राहकों के लिए ऑक्सीजन का काम जरूर  करता,लेकिन आपने शायद इसे जरूरी नहीं  समझा।
नियम कानून के जाल में फँसा आम इंसान क्या करे!बैंक में जमा पूंजी की गारंटी क्यों नहीं  होनी चाहिए ? क्यों नहीं  बैंक में जमा पूंजी Insured होनी चाहिए ?चंद लोगो के साजिश का भुक्तभोगी आमजन क्यों हो?Use And  Throw की पालिसी कब तक चलेगी?

निष्कर्ष 

संछेप में सरकार से उम्मीद करता हूँ कि दोगले और चरित्रहीन कुकृत्य की सजा आम इंसान को नहीं दी जाएगी।अन्यथा बैंक पर से भरोसा उठने लगेगा ,तब ये मत कहना कि लोगो ने साथ नहीं दिया।वैसे भी हिंदुस्तान में Taxpayer कम है और  जब उन्ही का पैसा मारा  जाने लगेगा, तो फिर लोग उसी रास्ते पर आने लगेंगे जिसपर हिन्दुतान की आधी आबादी है।जो खाना और पचाना जानती है।

आभार
कानून का योग    AUGUST KRANTI |अगस्त क्रांति  Blogging   सोने की चिड़ियाँ

Thursday 17 October 2019

कानून का योग


https://en.wikipedia.org/wiki/Floods_in_Bihar
Patna  Flood 

शीर्षक बेशक़ आपसे,हमसे साथ ही उन तमाम लोगों से जुड़ी है जो सर पर पांव रखकर "कानून का योग" करते दिखते हैं।रोजमर्रा की दौड़ में आगे निकलने की होड़ इतनी है कि खुद समय नहीं मिलता तो  सरकार मजबूरन योग कराने को विवश होती आयी है।मेरा तो मानना है कि स्वामी जी और मोदी जी ने जितने भी सार्थक प्रयास किये योग को सफल करने का ,उतने की आवश्यकता ही नहीं थी! जब काम "आने" में हो जाये तो "टका" क्यों फिजूल में खर्च करना!मतलब कानून का योग करवाइये,लोग अनुलोम-विलोम ,शीर्षासन इत्यादि स्वतः करने लगेंगे।
कानून का योग वैसे तो सरकार आमजन से करवाते ही रहती है जैसे ब्लॉक का आसन,हॉस्पिटल का आसन,पुलिसिया आसन,कचहरिया
आसान,Tax आसन , Traffic आसन  तथा अन्य विभागीय आसन ,इसके अलावा कुछ प्राइवेट जजिया आसन जैसे रंगदारी और खूनी आसन प्रमुखता से शामिल है।इन सब के साथ अगर प्रकृति भी आसन करा दे तो शारीरिक और मानसिक योगासन  पूर्ण कहलाते हैं।बिना बिजली,बिना पानी,बिना खाना,ऊपर से घर में गर्दन भर पानी ,पशु और मनुष्य साथ-साथ तैर रहे हों यानी बिना रंगभेद के सब एक हो जाते हैं ,ऊपर से डेंगू का डंका जोर शोर से बज रहा हो तो इससे बेहतर योग और क्या हो सकता है!!यह तो योग की महत्तम सीमा और रेखा को भी पार पाने जैसा है।और तब जाकर आप योग गुरु बनते हैं।
खैर,उपरोक्त शीर्षक "कानून का योग" को राजनीतिज्ञ लोग "कानून का राज" नाम से 'पुचकारते' हैं"कानून का राज है" की दास्तां प्रस्तुत करता ये आलेख मानव परिदृश्य को सरकारी डंडे से उठा-बैठक कराते राजशाही परिवेश लिये बिहारी स्वरूप को परिभाषित करने का महज एक संकल्प भर है।जरा तिरछी नजरें लिए आँखों के एक कोने से सरसरी पर ट्क-टकी निगाहें इस आलेख पर जरूर डालियेगा,"आलेख का योग" सार्थक हो जाएगा।
नजरिया बदलिए,और सरकार के चश्मे से विश्लेषण करना सीखिए तो आप चींटी से भी चासनी निकाल पायेंगे।जैसा कि मैं करने की कोशिश कर रहा हूँ।
पटना की बारिश ने पटना के लोगों का भला ही किया है।भला हो उस बारिश का ,भला हो उस नालों का तथा भला हो उन सभी पॉलीथिन और अन्य कारकों का जिसने शहर के पानी को रोके रखा नहीं तो जरा सोचिए नए नवेले Traffic Rule की इतनी भारी भरकम fine आमजन को भारी आर्थिक से ज्यादा मानसिक पीड़ा दे रही होती।जरा सोचिए,अगर बारिश न होती तो लोग रोड पर फर्राटे से गाड़ी दौड़ा रहे होते! तो ट्रैफीक नियम तोड़ने के कारण दंड के भागी होते! जो पुलिस के आला अधिकारी,कमिश्नर रोड पर चश्मा लगाए धूप में खड़े होकर शिकारी बन बैठे थे, उनकी तो सारी मछली ही हाथ से निकल गई।
पटना के जलजमाव ने कमजोर पड़ती आर्थिक नसों को भी कसने का काम किया है।पानी में 10 हजार से ज्यादा वाहन बर्बाद हो गए,यानी अब नए वाहन खरीदे जाएंगे, संयोग भी कितना अच्छा है कि बाढ़ भी तब आई जब दीवाली आने वाली थी।यानी खरीदारी तो होना ही था।निष्कर्षतः आर्थिक कराह भर रही ऑटोमोबाइल उद्योग को ऑक्सीजन मिल गया।

डेंगू तथा अन्य बीमारियों के कारण डॉक्टर साहब की चांदी ही चांदी है।बीमारी है तो डॉक्टर है,डॉक्टर है तो दवा है,दवा है तो दलाल है,दलाल है तो रोगी हलाल है।यानी स्वास्थ्य विभाग पूरा हरकत में आया होता है।
रोड नालों की सफाई होनी है तो ठेकेदार और नेता जी का गठजोड़ भी रंग लाएगी।रंगोलियां बनेंगी,रौशनिया होगी, पटाख़े  फूटेंगे ,दीवाली है भाई! और भी कई प्रकार के फायदे होते है जब इस तरह  से शहर  पानी- पानी होता है,भले ही सरकार या सरकारी तंत्र पानी- पानी हो या न हो!!
एक सबसे बड़ा फायदा तो बताना भूल गया!!
पानी -पानी होने से रोड पर नाव चलती है,और नाव चलती है तो टूटे सड़कों की jerk से आप बच पाते हैं तो एहसास होता है मानो दिवंगत ओमपुरी जी की उबर-खाबड़ गाल के बीच से दायें-बायें होते हुए हेमा जी तक पहुंच गए हों,तो ऐसे में नेताजी के  सपने पूर्ण होता महसूस हो पाता है।
नेताजी पानी में अपनी राजनीति की नौका को बहते- बहाते ,जैसे तैसे राजनीति की बहाव में हाथ से फिसलती कुर्सी को बचाने की कोशिश करते हैं, ये अलग बात है कि राम की कृपा से रामकृपाल जी इस प्रयास में पानी-पानी हो जाते  हैं ।
अपनी बदतमीज़ जुबान को लगाम देता हूँ और सभी पटनावासियों को नफे नुकसान से जल्द बाहर निकल दीवाली की खुशहाली हेतु शुभकामनाएं देता हूँ।
वैसे दीवाली अंक को जरूर पढ़ियेगा,जल्द आप सबके बीच लिखित होगा।

आभार।
बिहार में बाढ़ है नीतिशे कुमार है      गांधीगिरी | Gandhigiri  AUGUST KRANTI |अगस्त क्रांति

Tuesday 1 October 2019

बिहार में बाढ़ है नीतिशे कुमार है

बिहार में बाढ़ है नीतिशे कुमार है

अपनी लेखनी को 'अनुलोम-विलोम 'करवाना हो तो चले आइये बिहार,'दम फूल जाएगा आपका'।Double Engine की सुशासित एवं सुसज्जित सरकार,Double Digit Growth Rate, Double Development, Double Hospital Fecility ,Double Size Road यानि यहाँ सब कुछ Double-Double है।'तमंचे पे डिस्को' गाने को रचने वाले को आंशिक ही सही पर बिहार की याद जरूर आयी होगी क्योंकि मेरा ऐसा मानना है कि ऐसे गाने की कल्पना बिहार को सामने रखे बिना नहीं हो सकती।
क्षमा कीजिये मेरी कलम बाढ़ में लाचार यत्र-तत्र  थोड़ा भटक गई। क्या करूँ!कोई मदद को तैयार नहीं, विचार बाढ़ के पानी में ठिठुर रहा है ,मन सड़क पर तैर रहे नालों की गंदगियों से सना है,शरीर लाचार, बेबस एवं बेसुध निढाल पड़ा है किन्तु नयन प्रथमतल से सड़क पर तैरती मछली को देख कर मृगनयनी हो रहा है।
कहते हैं समय के साथ तक़दीर कभी भी बदल सकती हैं।कितनी इतराती होगी मछलियां आज -आदमी घर में और मैं बाहर! सपरिवार जल की रानी अभी बदहाल पोखर से निकल कर विशाल जलसागर में अटखेलियाँ ले रही होगी।
उपरोक्त सार बिहार की राजधानी पटना की है,बाढ़ में बहता पटना,बेहाल पटना,बदहाल पटना,बीमार पटना,भूखा -प्यासा पटना,मानवीय मूल्यों का मूल्यहीन होता पटना,किस्मत पर रोता पटना,अपमानित होता पटना,प्राकृतिक त्रासदी का भयंकर गवाह देता पटना,शब्द कम पड़ जा रहे हैं  पटना के वर्तमान स्वरूप को वर्णन करने में।
खैर,बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि इतनी सूखी पड़ी है कि मानवीय अश्रु के सैलाब भी इन्हें सींच नहीं पा रही है।'ठीके'कहते हैं नीतीश कुमार-कोई क्या कर सकता है प्राकृतिक आपदा के सामने,परेशान हो रहे होंगे वो अपने विला में,बैठक पे बैठक और  उसपे फिर बैठक,बैठ-बैठ के बैठे लाचार,"ठीके तो हैं नीतीश कुमार"!
पटना एक अव्यवस्थित राजधानी हमेशा से रही है,न सड़क,न ही सड़क के नियम,न नाले औऱ न ही नालों की कोई परिभाषा,कचरा यत्र-तत्र फैला ,शायद इसलिए दुनिया के प्रमुख प्रदूषित शहरों में उस पटना की गिनती आती है जो कभी पाटलिपुत्र की पवित्र धरती हुआ करती थी।
"Smart city "का सपना दिखाने वालों को वास्तविक परिस्थितियों की कोई विशेष चिंता नहीं,"स्वच्छ भारत-स्वच्छ बिहार" का झंडा उनलोगों के हाथों में है जिनमें स्वच्छमन का घोर अभाव है।विकास के दौड़ की आपाधापी में पटना समेत तमाम जिलों की मूलभूत आवश्यकताएं बहुत पीछे छूट गई।
ये सच है कि इन आपदाओं पर किसी का जोर नहीं परंतु 14 साल के सुशासन में एक व्यवस्थित पटना का निर्माण नहीं हो पाया,नाले जाम हो चुके हैं,थोड़ी से बारिश के पानी में नालों का पानी सड़क पर आ जाता है तो ऐसी घनघोर बारिश में शहर की क्या स्थिति हो सकती है उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है ये "बाढ़"।गली,मुहल्ले,कॉलोनियां,सड़क,मकान सब डूबे पड़े हैं, 'आम क्या खास क्या' सभी मकान की चारदीवारी से  पानी के निकल जाने का इन्तेजार कर रहे हैं साथ ही टुकुर-टुकुर सरकारी सहयोग की आस लगाये बैठे हैं।अव्यवस्था की ऐसी दशा अगर सुशासन की दस्तूर है तो विकास की दौड़ कैसी होगी ये विचारणीय है।गाड़ियां डूबी पड़ी है,कारोबार ठप पड़ा है या यूं कहूँ कि आर्थिक क्षति और मानवीय मूल्यों का तार-तार होता बिहार असल विकास की बाट जोह रहा है।
जैसा कि हर दुर्घटना के बाद सरकार सबक लेती है और जैसे-जैसे मामला ठंडा होता है तो सरकार भी ठंडा होने लगती है,उम्मीद है कि इस बार ऐसा नही होगा,Election भी है,एक सार्थक कदम उठाया जाएगा ,ऐसी उम्मीद सभी जरूर कर रहे हैं।सिर्फ सरकार के भरोसे रहना एक व्यवस्थित समाज की सोच नहीं हो सकती,समाज निर्माण में भागीदार एक- एक व्यक्ति को आगे आना होगा,आवाज़ बुलंद करनी होगी,संगठित होकर आपसी सहयोग से हर स्तर पर गंदगी,प्रदूषण,नालों की सफाई इत्यादि के लिए सजग होना होगा,गहरी नींद में सोए सरकारी तंत्र को झकझोरना होगा नहीं तो बाढ़ के रूप में आई ये प्राकृतिक त्रासदी महज इशारा है कि अब नहीं संभले तो भविष्य में ऐसी त्रासदी मानवीय संहार का रूप ले सकती है।
बिहार में बाढ़ से आयी बदहाली, जर्जर सरकार और सरकारी तंत्र को आइना दिखाने जैसा है,भावनाओं के अभाव में ही ऐसा हो सकता है कि कोई गलतियों से सीख न ले।
आशा है परिस्थितियां जल्द सुधरेगी और सामान्य जनजीवन दोबारा पटरी पर लौटेगा साथ ही समुचित प्रावधान की कोशिश युद्घस्तर पर होगी ताकि भविष्य में इन आपदाओं के कुप्रभाव को कुशल प्रबंधन से कम से कम किया जा सके।

आभार