Patna Flood |
शीर्षक बेशक़ आपसे,हमसे साथ ही उन तमाम लोगों से जुड़ी है जो सर पर पांव रखकर "कानून का योग" करते दिखते हैं।रोजमर्रा की दौड़ में आगे निकलने की होड़ इतनी है कि खुद समय नहीं मिलता तो सरकार मजबूरन योग कराने को विवश होती आयी है।मेरा तो मानना है कि स्वामी जी और मोदी जी ने जितने भी सार्थक प्रयास किये योग को सफल करने का ,उतने की आवश्यकता ही नहीं थी! जब काम "आने" में हो जाये तो "टका" क्यों फिजूल में खर्च करना!मतलब कानून का योग करवाइये,लोग अनुलोम-विलोम ,शीर्षासन इत्यादि स्वतः करने लगेंगे।
कानून का योग वैसे तो सरकार आमजन से करवाते ही रहती है जैसे ब्लॉक का आसन,हॉस्पिटल का आसन,पुलिसिया आसन,कचहरिया
आसान,Tax आसन , Traffic आसन तथा अन्य विभागीय आसन ,इसके अलावा कुछ प्राइवेट जजिया आसन जैसे रंगदारी और खूनी आसन प्रमुखता से शामिल है।इन सब के साथ अगर प्रकृति भी आसन करा दे तो शारीरिक और मानसिक योगासन पूर्ण कहलाते हैं।बिना बिजली,बिना पानी,बिना खाना,ऊपर से घर में गर्दन भर पानी ,पशु और मनुष्य साथ-साथ तैर रहे हों यानी बिना रंगभेद के सब एक हो जाते हैं ,ऊपर से डेंगू का डंका जोर शोर से बज रहा हो तो इससे बेहतर योग और क्या हो सकता है!!यह तो योग की महत्तम सीमा और रेखा को भी पार पाने जैसा है।और तब जाकर आप योग गुरु बनते हैं।
खैर,उपरोक्त शीर्षक "कानून का योग" को राजनीतिज्ञ लोग "कानून का राज" नाम से 'पुचकारते' हैं।"कानून का राज है" की दास्तां प्रस्तुत करता ये आलेख मानव परिदृश्य को सरकारी डंडे से उठा-बैठक कराते राजशाही परिवेश लिये बिहारी स्वरूप को परिभाषित करने का महज एक संकल्प भर है।जरा तिरछी नजरें लिए आँखों के एक कोने से सरसरी पर ट्क-टकी निगाहें इस आलेख पर जरूर डालियेगा,"आलेख का योग" सार्थक हो जाएगा।
नजरिया बदलिए,और सरकार के चश्मे से विश्लेषण करना सीखिए तो आप चींटी से भी चासनी निकाल पायेंगे।जैसा कि मैं करने की कोशिश कर रहा हूँ।
पटना की बारिश ने पटना के लोगों का भला ही किया है।भला हो उस बारिश का ,भला हो उस नालों का तथा भला हो उन सभी पॉलीथिन और अन्य कारकों का जिसने शहर के पानी को रोके रखा नहीं तो जरा सोचिए नए नवेले Traffic Rule की इतनी भारी भरकम fine आमजन को भारी आर्थिक से ज्यादा मानसिक पीड़ा दे रही होती।जरा सोचिए,अगर बारिश न होती तो लोग रोड पर फर्राटे से गाड़ी दौड़ा रहे होते! तो ट्रैफीक नियम तोड़ने के कारण दंड के भागी होते! जो पुलिस के आला अधिकारी,कमिश्नर रोड पर चश्मा लगाए धूप में खड़े होकर शिकारी बन बैठे थे, उनकी तो सारी मछली ही हाथ से निकल गई।
पटना के जलजमाव ने कमजोर पड़ती आर्थिक नसों को भी कसने का काम किया है।पानी में 10 हजार से ज्यादा वाहन बर्बाद हो गए,यानी अब नए वाहन खरीदे जाएंगे, संयोग भी कितना अच्छा है कि बाढ़ भी तब आई जब दीवाली आने वाली थी।यानी खरीदारी तो होना ही था।निष्कर्षतः आर्थिक कराह भर रही ऑटोमोबाइल उद्योग को ऑक्सीजन मिल गया।
डेंगू तथा अन्य बीमारियों के कारण डॉक्टर साहब की चांदी ही चांदी है।बीमारी है तो डॉक्टर है,डॉक्टर है तो दवा है,दवा है तो दलाल है,दलाल है तो रोगी हलाल है।यानी स्वास्थ्य विभाग पूरा हरकत में आया होता है।
रोड नालों की सफाई होनी है तो ठेकेदार और नेता जी का गठजोड़ भी रंग लाएगी।रंगोलियां बनेंगी,रौशनिया होगी, पटाख़े फूटेंगे ,दीवाली है भाई! और भी कई प्रकार के फायदे होते है जब इस तरह से शहर पानी- पानी होता है,भले ही सरकार या सरकारी तंत्र पानी- पानी हो या न हो!!
एक सबसे बड़ा फायदा तो बताना भूल गया!!
पानी -पानी होने से रोड पर नाव चलती है,और नाव चलती है तो टूटे सड़कों की jerk से आप बच पाते हैं तो एहसास होता है मानो दिवंगत ओमपुरी जी की उबर-खाबड़ गाल के बीच से दायें-बायें होते हुए हेमा जी तक पहुंच गए हों,तो ऐसे में नेताजी के सपने पूर्ण होता महसूस हो पाता है।
नेताजी पानी में अपनी राजनीति की नौका को बहते- बहाते ,जैसे तैसे राजनीति की बहाव में हाथ से फिसलती कुर्सी को बचाने की कोशिश करते हैं, ये अलग बात है कि राम की कृपा से रामकृपाल जी इस प्रयास में पानी-पानी हो जाते हैं ।
अपनी बदतमीज़ जुबान को लगाम देता हूँ और सभी पटनावासियों को नफे नुकसान से जल्द बाहर निकल दीवाली की खुशहाली हेतु शुभकामनाएं देता हूँ।
वैसे दीवाली अंक को जरूर पढ़ियेगा,जल्द आप सबके बीच लिखित होगा।
आभार।
बिहार में बाढ़ है नीतिशे कुमार है गांधीगिरी | Gandhigiri AUGUST KRANTI |अगस्त क्रांति
Very nice,Keep it up
ReplyDeleteधन्यवाद
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