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Monday 29 July 2019

सोने की चिड़ियाँ

इतिहास के पन्नो को उलटेंगे-पलटेंगे तो अनायास ही कई प्रकार के विचारों का काल्पनिक चित्र मानसपटल पर उभरने लगता है।मजबूत तंत्र,शक्तिशाली एवं सुसंगठित सेना तथा कुशल सामाजिक ,सांस्कृतिक और रणनीति का बेजोड़ समिश्रण था उस समय का राजतंत्र।तंत्र चलाने का ताना-बाना  कुशल कारीगरी का एक ऐसा उदाहरण था जिसकी बुनाई  व्यक्ति विशेष न होकर समाज विशेष होती थी।सिंधु घाटी सभ्यता इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
बात उन दिनों की है जब हिंदुस्तान "सोने की चिड़ियाँ" हुआ करती थी।साम्रज्य दिनानुदिन चौतरफा अपने परिधि को विस्तारित कर रहा थी।भारतीय राजाओ का परिसीमन विस्तार वहां के लोगो को गुलाम बनाने का न होकर उन्हें अपने राज्य के नागरिक के समान का दर्जा देना होता था।शायद इसलिए महान अशोक निरंतर राज्यविस्तार भी करते रहे और शासन प्रशासन भी निर्बाध चलती रही।
सुना भी है,पढ़ा भी है और देख भी पा रहा हूँ,समय के साथ ये सारी दुनिया भी गतिशील है,कालचक्र चल रहा है साथ ही साथ मानव समाज भी गतिशील है ,नित दिन विकासशील से विकसित होने को अग्रसित है।परन्तु हिंदुस्तान को जरा समझने की कोशिश करता हूँ तो मेरे सारे तर्क कुतर्क हो जाते है लिहाजा इस निष्कर्ष पे पहुचता हूँ कि दुनिया की एक मात्र इतिहास जो विकसित से अविकसित की ओर बढ़ा, वो हमारा हिन्दुस्तांन है।
"सोने की चिड़ियाँ" ने इतना लंबा सफर तय कर लिया कि हिंदुस्तान कब पीछे छूट गया उसे भी पता नहीं चल पाया।
               विश्लेषण के तालाब में जरा सा गोता लगाएंगे तो शासन  के डूब जाने या उबरने का आभास तो हो ही जाता है, साथ ही साथ  यह समझ पाना भी आसान हो जाता है कि परिवार चलना हो या साम्राज्य,दोनो के मूल principle एक ही है।किसी भी परिवार के पतन की शुरुआत तब होती है जब घर का प्रधान दिशाहीन हो जाये ठीक उसी प्रकार किसी देश या साम्राज्य का पतन तब शुरू होता है जब राजा दिशाहीन हो जाये।
कभी कभी आप ऐसे गलती कर देते है जिसके कारण सम्पूर्ण आने वाली पीढ़ी प्रभावित होती है।विजेता अशोक भी इससे अछूते नहीं रह पाए और सुख, शांति और अहिंसा को समाज मे बनाये रखने वाले सबसे बड़े अस्त्र "हिंसा" को छोड़ दिया।
जब शासक ही कमजोर हो जाये तो उस राज्य का विघटन निश्चित है,यही हुआ भी और एक विशाल किला ताश के पत्तों की तरह ढहने लगा।दक्षिण में श्रीलंका से लेकर उत्तर में यूनान और न जानें कितने प्रान्त हिंदुस्तान की विजय गाथा का प्रमाण था सब एक-एक कर टूटते गए और पारिणाम स्वरूप भारत माता के अखंड रूप खंड-खंड और  विकृत होकर आज हमलोगों के सामने है।
हम ऐसे देश के वासी है जहाँ खून के बदले खून की भावना नहीं होती ,परंतु सामने दुश्मन खड़ा हो युद्ध को तब आप उससे शांति की बात नहीं कर सकते।युद्ध ही एकमात्र विकल्प बच जाता है।
शब्दो को विराम दूं इससे पहले निष्कर्ष से थोड़ा पहले की बात   यह है कि दुनिया शांति अहिंसा और भाईचारे से तब चलती है जब आप अशांति ,हिंसा और द्वेष का शस्त्र चलाना जानते हों।
निष्कर्ष अगले अंक में कुछ विशेष तथ्यों के साथ लेकर आऊंगा।
आभार


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